गाजियाबाद के पत्रकार विक्रम जोशी की हत्या पुलिस का बदनाम चेहरा को दर्शता है। देश में पुलिस तंत्र फेल हो गया है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण उत्तर प्रदेश की पुलिस है। अभी विकास दुबे की घटना में पुलिस की संलिप्तता की कहानी का पटाक्षेप भी नहीं हुआ था कि गाजियाबाद पुलिस पर भी अपराधियों से सांठगांठ का मामला उजागर हुआ है। बताया जा रहा है कि पत्रकार विक्रम जोशी द्वारा अपनी भांजी के साथ छेड़छाड़ करने वाले युवकों के खिलाफ प्रताप बिहार चैकी प्रभारी को तहरीर दिया था, जिस पर पुलिस ने रिपोर्ट भी दर्ज नहीं किया और आरोपियों को शिकायत लीक कर मामले को संगीन बना दिया जिसका नतीजा हुुआ आरोपियों का हौसला बुलंद हुआ और वे विक्रम जोशी की हत्या तक कर डाले। यह भी मामला सामने आया है कि पुलिस ने कार्रवाई करने के वजाय आरोपियों से मामले को जल्द निपटाने को कहा । आरोपी विक्रम जोशी को धमकी देने लगे । फिर उन्होंने इस मामले की शिकायत चैकी प्रभारी प्रताप बिहार से की लेकिन चैकी प्रभारी अपने हिसाब से कार्रवाई करने की बात करते रहे। इसका नतीजा रहा कि सोमवार को अपने बहन के यहां से दो बेटियों के साथ अपने घर लौटते समय रास्ते में 10 लोगों ने उन्हें घेर कर पहले मारपीट की फिर गोली मार दी। घायल अवस्था में उन्हें यशोदा अस्पताल में भर्ती करया गया जहां आज सुबह 4 बजे उन्होंने दम तोड़ दिया। इस घटना में पुलिस और अपराधियों का सांठगांठ साफ दिख रहा है। पुलिस के साथ जिले के कप्तान भी इसके लिए कम दोषी नहीं कहे जा सकते, क्योंकि पत्रकार विक्रम जोशी ने इस मामले को उनके सामने भी शिकायत कर पुलिस द्वारा आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई न करने का आरोप लगाया था, उसके बाद भी यह घटना घटित हो गई।
आज उत्तर प्रदेश में गुंडाराज के साथ पुलिस भी संगठीत गुंडा नजर आ रही है। प्रदेश में लगातार एनकाउंटर होने के बाद भी अपराध पर कोई अंकुश लगता नजर नहीं आ रहा। देखा जा रहा कि पुलिस एनकाउंटर जिस रफ्तार से कर रही उसके दूने रफ्तार से अपराध बढ़ रहा है। अपराधियों पर इन एनकाउंटरों का कोई भय नहीं दिखाई दे रहा। उल्टे इस रफ्तार से की जा रही एनकाउंटर पुलिस की संगठीत गुण्डा की छवि दिखा रहा है। आज की यूपी पुलिस उपन्यास लेखक वेद प्रकाश शर्मा की एक उपन्यास का टाइटिल्स ‘ वर्दीवाला गुंडा ’ बन गई लगती है। विकास दुबे इसका जीता जागता उदाहरण है जहां पुलिस की मुखबिरी से उसके ही 8 जवानों को अपनी जान गवांनी पड़ी। पुलिस द्वारा अपराधियों के संरक्षण का मामला आये दिन उजागर हो रहा फिर अपराधियों में भय कैसे पैदा होगा ? केंद्र सरकार से जिस तरह पत्रकारों को आज के समय में भय लग रहा, उसी तरह यूपी सरकार भी पत्रकारों को एक तरह से भयभीत ही कर रखा है। जिस तरह से पत्रकारों के खिलाफ आये दिन किसी न किसी जिले में रिपोर्ट दर्ज होने के मामले सामने आते रहते है उससे ऐसा लगता है कि पुलिस पत्रकारों को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानने लगी है और इन्हें किसी भी मामले में फंसाने के फिराक में रहती है। ऐसे समय में पत्रकारिता बहुत जोखिम भरा काम हो गया है, क्योंकि आज पुलिस का कोई सहयोग नहीं मिल पाता उल्टे उसका उत्पीड़न ही किया जाता है। आज पुलिस के उच्च अधिकारी से लेकर सिपाही तक पत्रकारों की कोई सुनवाई करने को तैयार नहीं हैं। योगी सरकार का पत्रकारों के खिलाफ एक तरह से अघोषित उत्पीड़न है। जिस तरह पुलिस का चेहरा बदनाम होता जा रहा यह लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है।
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