स्मृति शेष
2 जुलाई 1930 - 13 जनवरी 2020
संजय त्रिपाठी
सीवान। भोजपुरी के महान कवि व साहित्यकार अक्षयवर दीक्षित का सोमवार शाम को निधन हो गया। वे 90 वर्ष के थे। वृद्धा अवस्था के साथ ही पिछले एक सप्ताह से वह बीमार हुए और इलाज के दौरान ही उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन से भोजपुरी साहित्य में शोक का लहर है। वे अपने पीछे दो पुत्र और तीन पुत्रियों के साथ भरापूरा परिवार छोड़ गए है। भोजपुरी साहित्य को समृद्ध करने के लिए वे जीवन पर्यन्त सेवा करते रहे।
सीवान के डीएवी हाई स्कूल सह इंटर काॅलेज में 33 वर्षो तक शिक्षक के रूप में कार्यरत रहते हुए उन्होंने साहित्य के क्षेत्र में अपना अलग आयाम बनाया। बिहार में गोपालगंज जिला के ग्राम दीक्षितौली पोस्ट हुस्सेपुर में 2 जुलाई 1930 को स्व0 पंडित सालिक दीक्षित के घर पैदा होकर उन्होंने माता और पिता दोनों का नाम रोशन किया। आज पूरा जिला ऐसे व्यक्तित्व के चले जाने से गमगीन है।
अक्षयवर दीक्षित का साहित्यिक अवदान महत्वपूर्ण रहा है। सीवान के भोजपुरी भवन, निराला नगर में रहते हुए उन्होंने साहित्व की जो सेवा की वह हमेशा के लिए यादगार बना रहेगा। उनके संपादित ग्रंथों में हिन्दी व भोजपुरी दोनों ही साहित्य रहा है। इसमें नवज्योति, गोस्वामी सदानन्द स्मृति ग्रंथ, भोजपुरी सेवा महिला, डूमरी कतेक दूर, भोजपुरी माटी के संत राजनेता, भारतीय स्वातंत्रता संग्राम का प्रथम वीर नायक ( 1969 - 2007 तक ) मुख्य है। उनके मौलिक ग्रथ हिन्दी, संस्कृत और भोजपुरी में अॅंड.ऊॅं, सतहवा, सीमा संस्कृत सौरभम्, श्रद्धांजलि, भोजपुरी निबंध, भोजपुरी के सपूत रहे है।
पत्रकारिता के क्षेत्र में भी उनका उल्लेखनीय योगदान रहा है। मासिक पत्रिका आगमन, त्रैमासिक युग - संदेश, समकालीन भोजपुरी साहित्य के साथ ही उन्होंने भोजपुरी विश्व त्रैमासिक पत्रिका के संपादक तथा परामर्शदाता भी रहकर भोजपुरी साहित्य की सेवा की है। इसके साथ ही सांगठनिक क्षेत्र में सारण जिला, सीवान, गोपालगंज जिला हिन्दी तथा भोजपुरी साहितय सम्मेलनों के सचिव, अध्यक्ष, स्वागत मंत्री, स्वागताध्यक्ष के रूप में 1969 से 1993 तक इन पदों को सुशोभीत किया है। इसी तरह 1975 से 1990 तक अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के उपाध्यक्ष, प्रवर समिति में रह कर सेवा किए। 1993 में रानीगंज प0 बंगाल अधिवेशन के दौरान अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन के अध्यक्ष बन कर अधिवेशन को सफल बनाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान को आज भी भोजपुरी समाज याद करता है। 1995 में विश्व भोजपुरी सम्मेलन के उपाध्यक्ष रहे तथा भोजपुरी विकास मंडल के संस्थापक सचिव के पद पर रहते हुए अंत समय तक सेवा कार्य में जुटे रहे। भोजपुरी साहित्य में इनकी कमी हमेशा ही खलती रहेगी।
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