मनमोहन कुमार आर्य
देहरादून। देहरादून का रेलवे स्टेशन एक शताब्दी से भी अधिक पुराना है। सन् 1899 से यह कार्यरत है। लगभग 20 वर्ष पूर्व इसका शताब्दी समारोह मनाया गया था। पुराने व वर्तमान समय में देहरादून का महत्व अनेक कारणों से रहा है। देहरादून के निकट ही मसूरी पर्वत है जिसे अंग्रेजों के समय से व आज भी पर्वतों की रानी कहा जाता है। यहां पर आई.ए.एस. आदि अधिकारियों के प्रशिक्षण के लिये लाल बहादुर शास्त्री प्रशासनिक अकादमी है। इण्डो-तिब्बत बार्डर पुलिस का मुख्यालय व कार्यालय भी यहां पर है। इन दोनों संस्थाओं व संस्थानों की विस्तृत वीडियो-चित्र देखें तो यहां की सुन्दरता का अनुमान होता है। परमात्मा की बनाई हर चीज सुन्दरतम है परन्तु परमात्मा की कुछ रचनायें अधिक अच्छी जगती हैं। यही कारण है कि मसूरी में पूरे वर्ष भर पर्यटक आते हैं। शीत ऋतु में यहां पर अच्छा हिमपात होता है। इस वर्ष भी यहां पर काफी अधिक हिमपात हुआ है। यह भी बता दें कि मसूरी में आर्यसमाज मन्दिर भी है। हमने वर्षों पूर्व यहां एक सत्संग में भाग लिया था जिसमें आर्यजगत के शीर्ष विद्वान व इतिहास लेखक पं. सत्यकेतु विद्यालंकार जी का व्याख्यान हुआ था। उनका व्याख्यान भी इतिहास विषयक था और उन्होंने अपने व्याख्यान में स्वामी दयानन्द जी के सन् 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लेने विषयक कुछ तथ्यों को प्रस्तुत किया था। इसके बाद भी अनेक अवसरों पर हमें इस आर्यसमाज मन्दिर में जाने का अवसर प्राप्त हुआ है।
देहरादून से लगभग 70 किमी. की दूरी पर चकराता हिल स्टेशन है। यह भी पर्वतीय स्थान है। यहां पर चारों ओर चीर वा देद्वार के ऊंचे ऊंचे वृक्ष व वन है। गर्मियों में यहां जो वायु चलती है उसमें एक अद्भुद सुख व शीतलता का अहसास होता है। हमने सन् 1965 की ग्रीष्म ऋतु में यहां लगभग डेढ़ महीने तक अपने पिता के साथ निवास किया था। वह हमारे जीवन के स्वर्णिम पल थे। आज अपने उन जन्मदाता पिता की छत्रछाया उपलब्ध नहीं है। 42 वर्ष पूर्व सन् 1978 में उनका देहावसान हुआ था। उन दिनों यहां पर तिब्बतियों की सेना होती थी और यहां आने के लिये सरकारी अनुमति की आवश्यकता होती थी। आर्मी के कारण उन दिनों इस स्थान का महत्व था क्योंकि यहां से चीन की सीमा पास ही लगती है और सन् 1962 में चीन से युद्ध भी हो चुका था। चकाराता से त्यूनी, हिमाचल प्रदेश एवं चकराता के अनेक ग्रामों आदि में भी जाने के मार्ग हैं। चकराता के निकट ही लाखा-मण्डल नामक एक ऐतिहासिक स्थान है। यहां पर महाभारतकालीन भवन आदि हैं, ऐसा हमने वहां गये व रहे व्यक्तियों से सुना है। चकराता के निकट का क्षेत्र ज्योंसार बाबर कहलाता है। यहां बहुपति प्रथा अस्तित्व में रही है। अब भी कहीं कहीं यह प्रथा विद्यमान है। हमने ऐसे अनेक व्यक्तियों से भेंट की है जिन परिवारों में यह प्रथा थी। हमारे पिता ज्योन्सार बाबर के कोरूवा ग्राम में काफी समय तक रहे। एक बार हम 6-7 वर्ष की आयु में वहां उनके साथ रहे थे। वहां के स्याना जी के परिवार में भी यह प्रथा थी। ज्योन्सार बाबर की अपनी बोली है जो हिन्दी का ही एक विकृत रूप है और उसे बोलने का लहजा हिन्दी से भिन्न है।
देहरादून का महत्व निकटवर्ती पौराणिक तीर्थ स्थानों हरिद्वार, ऋषिकेश, केदारनाथ, बदरीनाथ, गगोत्री व यमनोत्री आदि स्थानों के कारण से भी है। नैनीताल का पर्वतीय पर्यटन स्थल भी देहरादून से 6 से 8 घंटे की यात्रा की दूरी पर है। देहरादून का एक महत्व यहां पर इण्डियन मिलिटरी एकेडमी, तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग का मुख्यालय, वन अनुसंधान संस्थान का प्रमुख कार्यालय, भारतीय सर्वे आफ इण्डिया का मुख्यालय, भारतीय परितेलन संस्थान, भारतीय तेल खोज संस्थान, यहां का विस्तृत कैन्ट एरिया, निकट ही गंगा व यमुना नदियों का प्रवाह आदि स्थानोंके कारण से है। देहरादून से दूरस्थ स्थानों पर सम्पर्क के लिये रेलयात्रा ही सबसे अधिक सुगम होती है। अब यहां हवाई अड्डा भी बन गया है। देश के कुछ प्रमुख स्थानों के लिए यहां से वायु सेवायें उपलब्ध हैं। रेल से राजकोट (टंकारा का निकटवर्ती स्टेशन) तक जाने के लिये भी सीधी रेल सेवा है। हम अनेक बार यहां से टंकारा जा चुके हैं। यही रेल दिल्ली, जयपुर, अजमेर, अहमदाबाद, , जामनगर, द्वारका आदि स्थानों पर भी जाती है। देहरादून से दिल्ली, चेन्नई, मदुरै, कोचीन व त्रिवेन्द्रम के निकटस्थ स्थान, इन्दौर व उज्जैन, आगरा, मथुरा, मुम्बई, कोलकत्ता, वाराणसी, गोरखपुर आदि की रेल सेवायें उपलब्ध हैं। एक शताब्दी से पुराना स्टेशन होने पर भी किन्हीं कारणों से यहां रेल लाईन का दोहरीकरण नहीं किया गया तथा देहरादून का स्टेशन भी सीमित स्थान में बना हुआ है जो रेल सेवाओं के विस्तार में बाधक है। इन सब कारणों से रेलवे स्टेशन का यथासम्भव विस्तार व सुविधायुक्त बनाया जाना अपेक्षित था। विगत 3 महीनों से यहां रेल सेवाओं में विस्तार हेतु अनेक निर्माण कार्य किये जा रहे हैं। इसमें इस बात का भी ध्यान रखा गया कि यहां 18 रेल डिब्बों की गाड़ियां आ सके जो पहले नहीं आ पाती थी। इन सब सुविधाओं को प्रदान करने के लिये पुरानी रेल पटरियों को हटाकर नये सिरे से 18 डिब्बों की रेलगाड़ी के खड़ा करने के लिये पटरियों को बिछाया गया है और पांच प्लेटफार्म बनाये गये हैं। पहले यहां मात्र चार प्लेटफार्म होते थे जहां केवल 12 से 14 रेलडिब्बों की गाड़िया ही आ जा सकती थीं। हमें रेल से आरम्भ से ही विशेष लगाव रहा है। हमने अपने जीवन में रेल से भारत के अनेक भागों की यात्रायें की हैं। अतः हम रेल यात्रा के अलावा भी रेलवे स्टेशन पर जाकर नई रेलों व योजनाओं को जानने के इच्छुक रहते हैं। इसी स्वभाव के कारण आज हम रेलवे स्टेशन के कार्यों को देखने के लिये वहां गये।
देहरादून रेलवे स्टेशन को पिछले तीन महीनों से बन्द कर दिया गया है जिससे निर्माण कार्य सुगमता से सम्पन्न किया जा सके। 8 फरवरी, 2020 से रेल सेवाओं का संचालन पुनः आरम्भ होना है। आगामी शिवरात्रि 21 फरवरी, 2020 को टंकारा में ऋषि बोधोत्सव का आयोजन होना है। हमने इस अवसर पर वहां सम्मिलित होने के लिये देहरादून से 16 फरवरी को चलने वाली देहरादून-द्वारका-ओखा एक्सेप्रेस रेलगाड़ी में आरक्षण कराया हुआ है। देहरादून से हमारे कुछ मित्रों की टोली भी टंकारा जा रही है। कुल मिलाकर 9 सदस्य हैं। देहरादून स्टेशन के कार्यों की प्रगति को देखकर लगा कि आगामी 8 फरवरी, 2020 से रेलगाड़ियों का संचालन आरम्भ हो जायेगा। देहरादून स्टेशन पर दो नये प्लेटफार्म बनाये गये हैं। रेल-पुल को भी प्रत्येक प्लेटफार्म तक जाने आने के लिये तैयार किया गया है व पुराने पुल में आवश्यक परिवर्तन किये हैं। यह कार्य समाप्त हो गया है। स्टेशन के प्रवेश द्वार को भी नया रूप दिया गया है जो कि भव्य एवं आकर्षक है।
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