सुमंत कुमार तिवारी
भाजपा मीडिया सेल ने एक अफवाह उड़ाई की चुनाव बाद नीतीश कुमार का राजनीतिक सफर खत्म हो जायेगा इत्यादि इत्यादि । यह खबर एक भगदड़ बन के उभरी, इस अफवाह को लेकर बाद में भाजपा को कई वक्तव्य देने पड़े । दूसरे छोर पर तेजस्वी बैठे थे , लगभग 30 % एमवाई वोट जिसका पोलिंग परसेंटेज 80: तक है । सबसे पहले भगदड़ अति पिछड़ा में मचा । नीतीश के जाने की खबर से इनके लिए विधानसभा में लालू व तेजस्वी ही एक मात्र रास्ता थे । दूसरा भगदड़ सवर्णों में मचा । कांग्रेस इनको टिकट देकर नहला दी । कुछ एक ’ बाबू साहब’ को तेजस्वी भी । ऊपर से करीब 10 लाख नौकरी का वादा । दक्षिण बिहार के कई क्षेत्रों में भाजपा द्वारा कमजोर उम्मीदवार । सीटों के बंटवारा में नीतीश के टीम के साथ हाथापाई की नौबत । विद्रोही उम्मीदवार और सबसे बड़ी गलती यह हुई कि भाजपा शीर्ष नेतृत्व को उम्मीद था कि यादव वोट टूटेंगे । टूटे तो नहीं ही बल्कि पहले से ज्यादा एकजुट हुए ।
पहले चरण के बाद तेजस्वी की आक्रमक रैली ने सवर्णों की नींद उड़ा दी । बगल में बेफिक्र सो रहे अति पिछड़ा को उन्होंने जगाने का कोशिश किया। कुछ जागे तो कुछ चद्दर तान फिर से सो गए की - ‘ हमनी के का फर्क पड़े वाला बा । ’
दूसरे चरण में एनडीए बहुत संभालने का कोशिश किया । केन्द्र से हर जन धन खाता में दो महीना का पैसा चुनाव के दो दिन पहले ही भेजा गया । चुनाव चलता रहा और मोदी व नीतीश भाषण देते रहे । इसका असर महिलाओं में होगा । महिला खुल कर नीतीश के साथ नहीं आई लेकिन उन्हें मौका मिला तो घूंघट उतार वो नीतीश व भाजपा के लिए वोट करेंगी । खासकर अति पिछड़ों की महिलाएं । इसके पीछे दो तर्क है, बहुसंख्यक आक्रमक जनता से नीतीश द्वारा सुरक्षा और शराबबंदी से परिवार में शान्ति । लेकिन यह वोट कितना पड़ा, यह भविष्य के गर्भ में है ।
तेजस्वी अगर मुख्यमंत्री बने तो तेजप्रताप साधु सुभाष की भूमिका में होंगे । सबसे बड़ी चुनौती प्रशासन और अपने आक्रमक बहुसंख्यक को सावधान मुद्रा में रखना । यह बहुत बड़ी चुनौती है । शायद यही एक कारण है कि अखिलेश इतना विकास कर के भी यूपी हार गए क्योंकि गांव गांव में अतिपिछड़ा इनके वोटर के आक्रमक छवि से परेशान था ।
चैदहवें वित्त आयोग के साथ बिहार को केन्द्रीय टैक्स से करीब १.५ लाख करोड़ हर साल मिलेगा । यह बहुत पैसा होता है । अब यहां असल खेल होगा और इसी खेल को लेकर लड़ाई होगी या बिल्ली को सारा दूध चटक करते देख आंख बन्द करना होगा ।
नीतीश का १५ साल में पहला ५ साल के बाद , स्तुतिगान करने वाले ने प्रधानमंत्री का ख्वाब दिखाया और उसी वक्त से बिहार में विकास रुक गया । वो महत्वकांक्षा में ऐसे फंसे की आज पूरा बिहार फंसा हुआ पड़ा है । अगर वापस भी आए तो कमजोर ही रहेंगे । प्रकाश झा , संजय झा और देवेश चंद्र ठाकुर जैसे के चक्कर में जो रहा, इतिहास गवाह है - उसका सब कुछ लुटा है , उसने सब कुछ गंवाया है । शक्ति आंखें बन्द कर देती है और कानो पर आश्रित व्यक्ति किस गड्ढे में गिरता है। जिन्दगी का अनुभव बता ही रहा होगा, फिर भी एक आशा है। तमाम बातों के बाद , जनता बटन दबाने के समय एक क्षण के लिए ही सही, अपनी जान माल की सुरक्षा अवश्य सोची होगी । बाकी भूपेन्द्र , नित्यानंद , रामकृपाल और नन्द किशोर के दोनो हाथ में लड्डू है । बेफिक्र होकर सो रहे हैं ।
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