- जन-संगठनों ने कॉर्पोरेटों पर भारी कर लगाकर सभी कामगार आबादी को 3 महीने की न्यूनतम आय देने की मांग की
- धन-कर और उत्तराधिकार-कर की पुनःबहाली की मांग उठाई
विशेष संवाददाता
नई दिल्ली । मजदूर, युवा, महिला संगठनों तथा ट्रेड यूनियनों ने केंद्र सरकार के कर्मचारियों और पेंशनधारियों के महंगाई भत्ता और महंगाई राहत पर 2021 जून तक के लिए रोक लगाने के कदम की कड़ी आलोचना की। तथाकथित तौर पर कोविड-19 महामारी के कारण वित्तीय संकट का सामना कर रही सरकार द्वारा राजस्व को बढ़ाने के लिए यह कदम लिया है। सरकार का कदम महज एक खोखला कदम है, क्योंकि सरकार अभी भी कामगार जनता की पीड़ा के प्रति उदासीन है तथा अमीरों और कॉरपोरेटों के प्रति उदार है, जिसकी झलक हमें कॉर्पोरेट घरानों को साल के प्रारंभ में दी गई व्यापक टैक्स-छूट से देखने को मिलती है।
लॉकडाउन के दौरान जब आम जनता भूख और बाकी समस्याओं के मारे परेशान है, तब कथित रूप से उनके दुखों को कम करने के लिए सरकार ने कुछ दिखावटी कदम उठाए हैं। हालांकि, अब तक देश के कॉरपोरेट घरानों की अकूत संपत्ति पर कर लगाने का कोई प्रयास सरकार के द्वारा नहीं किया गया है। इसके बजाय, सरकार ने शर्मनाक तरीके से उन्हें PM-CARES फंड में स्वेच्छा से योगदान देने के लिए कहा जा रहा है। ज्ञात हो कि जहां देश के कॉर्पोरेट घराने व्यापक मुनाफे और टैक्स में छूट के मजे ले रहे हैं, वहां कामगार जनता को अर्थव्यवस्था में अपने हिस्से से वंचित रखा जा रहा है और इसके बदले उनके लिए सिर्फ नकली चिंता व्यक्त की जा रही है।
संगठनों की मांग है कि इस संकट से उबरने के लिए कॉरपोरेट घरानों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर भारी कर लगाया जाना चाहिए। साथ ही, 2016 में भाजपा सरकार द्वारा खत्म किया गया धन-कर और उत्तराधिकार-कर को फिर से लागू किया जाना चाहिए। इससे उत्पन्न की गई राशि का उपयोग सभी कामगारों और मेहनतकश जनता को 3 महीने के बुनियादी न्यूनतम आय प्रदान करने के लिए किया जाना चाहिए।
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