गाजियाबाद। चुनावी रणभेरी बज चुकी है। मैदान सज चुका है। प्रतिद्वंदी एक - दूसरे के समक्ष ताल ठोक रहे है। तीनों मुख्य पार्टियों के योद्धाओं का नाम सामने आ गया है, लेकिन इनके अपने ही तलवार को कुंद करने में लगे हैं। गाजियाबाद में 11 अप्रैल को इन प्रतिद्वंदियों के बीच भीषण युद्ध होगा, और कल नामांकन का अंतिम दिन है, लेकिन प्रत्याशी अपने रूठों को मनाने में ही दिन - रात एक कर रखे है। हालांकि सभी प्रत्याशी यह दावा कर रहे है कि सभी नाराज साथियों को मना लिया जायेगा।
सबसे ज्यादा गठबंधन प्रत्याशी को बदलने को लेकर मामला उलझ गया है। सपा ने पहले पार्टी के जिलाध्यक्ष सुरेन्द्र कुमार मुन्नी को टिकट देकर ब्राह्मण कार्ड खेल दिया। लेकिन जैसे ही कांग्रेस ने भी ब्राह्मण प्रत्याशी को मैदान में उतारा, उसने स्थिति की नाजकता को देखते हुए यहां वैश्य कार्ड पर दाव लगा बसपा के सुरेश बंसल को पार्टी में जोड़कर उन्हें अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया। इससे गाजियाबाद में ब्राह्मण समाज के संगठनों को अपना अपमान महसूस हुआ और वे सपा के खिलाफ बोलने लगे। बताया जाता है कि मुन्नी को अंदरखाने धक्का लगा है, भले ही वे मीडिया में इसकी चर्चा करे या न करे। विधानसभा चुनाव में भी उन्हें सपा ज्वाइन करने के बाद भी टिकट से हाथ धोना पड़ा था। गठबंधन से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार सुरेश बंसल ने शनिवार को गोविन्दपुरम में गठबंधन के तीनों दलों सपा, बसपा और आएलडी नेताओं की बैठक बुलाई थी। इसमें सपा के जिला अध्यक्ष सुरेन्द्र कुमार मुन्नी नहीं पहुंचे। हालांकि वे इस विषय में कह रहे हैं कि वे पार्टी के काम से ही कही बाहर गये हुए थे, जिस कारण बैठक में नहीं पहुंच पाए। दूसरी तरफ आम चर्चा है कि बैठक में नहीं पहुंच कर उन्होंने अपने समर्थकों को यह संदेश देने का कार्य किया है कि हाईकमान का निर्णय गलत है। बताया जा रहा है कि ब्राह्मणों में सपा के नाराज समर्थकों को कांग्रेस साधने में जुट गई है।
दूसरी तरफ कांग्रेस प्रत्याशी डाॅली शर्मा का भी दूसरा गुट अंदरखाने विरोध कर रहा है। वहीं कांग्रेस के पूर्व सांसद सुरेन्द्र प्रकाश गोयल पार्टी द्वारा उपेक्षा किये जाने से नाराज चल रहे है। उन्होंने तो नामांकन के लिए फार्म भी खरीद लिया है और कल नामांकन का अंतिम दिन है देखना यह है कि वे क्या कदम उठाते है। हालांकि कांग्रेस में चुनाव में हमेशा भीतरघात का इतिहास रहा है। कांग्रेस के नगरअध्यक्ष नरेन्द्र भारद्वाज का कहना है कि गोयल जी को मना लिया जायेगा।
बीजेपी प्रत्याशी बी के सिंह को पार्टी के नेताओं व कार्यकर्ताओं का ही विरोध झेलना पड़ रहा है। टिकट की घोषणा न होने तक जोरदार तरीके से उनका विरोध पांच विधायकों व मेयर द्वारा खुलेआम किया जा रहा था। उनका विरोध बाहरी होने का सबसे ज्यादा पार्टी में था। गठबंधन और कांग्रेस ने स्थानीय नेताओं को अपना प्रत्याशी बनाया है, वहीं बीजेपी इस बार भी स्थानीय नेताओं को कोई अहमियत नहीं दी है। यहां के स्थानीय पार्टी कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस तरह हाईटेक सीट बनाकर यहां के नेताओं को पाईपलाईन में डालने का काम पार्टी कर रही है, जिसका खामियाजा उसे भुगतना पड़ सकता है। हालांकि कार्यकर्ता मोदी का चेहरा देख चुनाव में कार्य कर रहे है, लेकिन इस बार वैश्य व ब्राह्मण वोट के छिटकने से बीजेपी के लिए परेशानी का सबब बन सकता है।
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